कॉन्ग्रेस की हार का विश्लेषण तो कर लेते… लेकिन हमारा नेता ही हमें छोड़ कर निकल गया: खुर्शीद
राहुल गाँधी ने जब लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस की बुरी हार के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, तब काफ़ी लोगों का मानना था कि वह जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं। अब कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बयानों से भी इसी बात की बू आ रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि अब वक्त आ गया है, जब कॉन्ग्रेस अपनी बुरी हार की समीक्षा करे और यह समझने का प्रयास करे कि जनादेश का सन्देश क्या है? उन्होंने कहा कि पार्टी हार का विश्लेषण इसीलिए नहीं कर पाई क्योंकि राहुल गाँधी ऐन मौके पर निकल गए, जिससे पार्टी में एक शून्य पैदा हो गया।
उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रह चुके खुर्शीद ने कहा कि कॉन्ग्रेस एकजुट होकर हार का विश्लेषण नहीं कर सकी क्योंकि उनके नेता ही उन्हें छोड़ कर चला गया। खुर्शीद ने सोनिया गाँधी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने पर भी नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा कि वह सोनिया के कार्यकारी अध्यक्ष बनने से ख़ुश नहीं हैं। खुर्शीद ने कहा कि जो भी अध्यक्ष बने, वह टिका रहे। यूपीए-2 में विदेश, अल्पसंख्यक मामले और क़ानून जैसे अहम मंत्रालय संभाल चुके खुर्शीद ने बताया कि वह अपनी पीड़ा इसीलिए व्यक्ति कर रहे हैं ताकि नेतृत्व इसे सुने।
खुर्शीद ने आशा जताई कि कॉन्ग्रेस पार्टी हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव के लिए तैयार है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हरियाणा कॉन्ग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन को उन्होंने सकारात्मक बताया। उन्होंने माना कि पार्टी हरियाणा में आंतरिक कलह से जूझ रही है लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि इससे निपट लिया जाएगा। खुर्शीद ने आगाह किया कि समय कम है और कॉन्ग्रेस को इससे जल्द निपटना चाहिए। राहुल गाँधी के सम्बन्ध में खुर्शीद ने कहा
2009 लोकसभा चुनाव में फर्रुखाबाद से जीत दर्ज करने वाले सलमान खुर्शीद 2014 लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार गए थे। वह चौथे स्थान पर रहे थे। इससे पहले 1991 में भी वह संसद में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। अब खुर्शीद ने उम्मीद जताई है कि काश कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल पार्टी के साथ होते। खुर्शीद ने पार्टी को आगाह किया कि जितनी जल्दी हार की समीक्षा कर ली जाए, उतना ही अच्छा है।
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SBI ने बदला गर्भवती महिलाओं की भर्ती का नियम ; 3 महीने से ज्यादा की प्रेग्नेंसी पर महिला को अनफिट करार देना मातृत्व अधिकारों का हनन
दिल्ली महिला आयोग का कहना है कि इस नियम से महिलाओं का अधिकार प्रभावित होगा और कार्यस्थल पर उनके साथ भेदभाव को और बढ़ावा मिलेगा. बैंक एसोसिएशन ने भी मैनेजमेंट को पत्र लिखकर गाइडलाइन वापस लेने का दबाव बनाया है.देश के सबसे बड़े बैंक SBI के महिला कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर नियमों में किए बदलाव पर बवाल शुरू हो गया है. एसबीआई ने 3 महीने से ज्यादा प्रेग्नेंट महिला को अस्थायी रूप से अनफिट करार देते हुए नियुक्ति पर रोक लगा दी. इसके बाद दिल्ली महिला आयोग ने बैंक को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
3 महीने से ज्यादा अवधि की प्रेग्नेंट महिला को तत्काल नई नियुक्ति नहीं दी जा सकती
SBI ने अपने सर्कुलर में कहा था कि 3 महीने से ज्यादा अवधि की प्रेग्नेंट महिला को तत्काल नई नियुक्ति नहीं दी जा सकती है. वे डिलीवरी के चार महीने बाद नौकरी ज्वाइन कर सकती हैं. तब तक उन्हें अस्थायी रूप से अनफिट माना जाएगा. इस विवादित नियम पर CPI के सांसद बिनोय विश्वम ने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र भी लिखा है. उन्होंने कहा, ये कैसा महिला सशक्तीकरण है जहां प्रेग्नेंट होने पर उसे अनफिट करार दे दिया जाता है.
यह महिलाओं के साथ वर्कप्लेस पर भेदभाव है.आयोग ने बताया भेदभाव वाला कानून दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल ने एसबीआई के नए नियम को महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाला कानून बताया है. उन्होंने कहा, 3 महीने से ज्यादा की प्रेग्नेंसी पर महिला को अनफिट करार देना उसके मातृत्व अधिकारों का हनन है. हम उन्हें नोटिस जारी कर इस महिला विरोधी कानून को वापस लेने की मांग करते हैं. साल 2009 में भी बैंक ने इसी तरह का कानून लादने की कोशिश की थी, जिसे बाद में वापस लेना पड़ा था.
महिला कर्मचारियों के प्रमोशन पर भी असर
आल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमन एसोसिएशन ने नए नियम की आलोचना करते हुए कहा कि इससे महिला कर्मचारियों के प्रमोशन पर भी असर पड़ सकता है. वैसे तो नया नियम 21 दिसंबर, 2021 से लागू हो चुका है, लेकिन प्रमोशन के मामले में यह 1 अप्रैल, 2022 से प्रभावी होगा. इसके बाद से महिला कर्मचारियों का प्रमोशन प्रभावित हो सकता है. अभी तक 6 महीने की गर्भवती महिला को भी बैंक ज्वाइन करने का नियम था
नई गाइडलाइ वापस लेने की अपील की
आल इंडिया एसबीआई एम्प्लाइज एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी केएस कृष्णा ने एसबीआई मैनेजमेंट को लिखे पत्र में नई गाइडलाइ वापस लेने की अपील की है. उन्होंने कहा कि नया नियम पूरी तरह महिला विरोधी है और यह महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है. प्रेग्नेंसी को किसी भी तरह से अनफिट नहीं करार दिया जा सकता. किसी महिला को अपने बच्चे की डिलीवरी या नौकरी में से एक चुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, क्योंकि दोनों ही उसके अधिकार हैं.
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