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भूपेश सरकार के नये अध्यादेश से आरक्षण बढ़कर 82% हो गया, क्या बच पाएंगे कानूनी पेंच से ?

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राज्य के सियासी गणित को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पुख्ता करने का प्रयास किया है, आरक्षण के जरिए सियासी मास्टर स्ट्रोक मार कर. भूपेश बघेल ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रदेश में आरक्षण का दायरा बढ़ाने का ऐलान किया था। घोषणा के 20 दिन बाद राज्य सरकार ने विधिवत आरक्षण बढ़ाए जाने का अध्यादेश भी जारी कर दिया गया है। इस अध्यादेश के जरिए आरक्षण का प्रतिशत बढ़कर 82 फीसदी हो गया है। आरक्षण के नए प्रावधानों का छत्तीसगढ़ लोक सेवा संशोधन अध्यादेश 2019 का राजपत्र में प्रकाशन कर दिया गया है। इस नई व्यवस्था के जरिए अब छत्तीसगढ़ राज्य में अनुसूचित जाति (एससी) का आरक्षण 12 से बढ़कर 13 और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का आरक्षण 14 से बढ़कर 27 प्रतिशत हो गया है। और कांग्रेस की भूपेश सरकार ने तर्क दिया है की जनसंख्या के आधार पर आरक्षण दिया गया है और उन्होंने इसके लिए अधिसूचना भी जारी कर दिया गया है, मगर कानूनी पेंच फंसने की आशंकाओं को किसी भी तरह से नकारा नहीं जा रहा है. क्योंकि क्योंकि पूर्व की रमन सरकार ने सन २०१२ में आरक्षण 55% कर दिया था, जिसकी याचिका अभी लंबित है.

आरक्षण की तय सीमा यानी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण तभी दिया जा सकता है जब आरक्षण बढ़ाए जाने के कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में डलवा दिया जाए. ये काम सिर्फ केंद्र सरकार ही कर सकती है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, कोई भी राज्य 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकता.
संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नागरिकों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है. यहां तक की पिछड़े वर्ग में भी क्रीमी लेयर में आने वाले को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता यानी भारत में आर्थिक आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था ही नहीं है. इसीलिए अब तक जिन-जिन राज्यों में इस आधार पर आरक्षण देने की कोशिश की गई उसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. वसुंधरा सरकार ने विशेष पिछड़ा वर्ग का गठन किया था और गुर्जर समेत चार जातियों को अलग से पांच फीसदी आरक्षण दे दिया था. राजस्थान में पहले से 49 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा था और एसबीसी कोटे में पांच फीसदी आरक्षण देने से आरक्षण की सीमा 54 फीसदी हो गईस जिसकी वजह से साल 2008 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी. खट्टर सरकार ने जाट समेत छह जातियों को शैक्षणिक आधार पर 10 फीसद आरक्षण देने का कानून बनाया. साथ ही सरकारी नौकरियों में भी छह से लेकर दस प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की लेकिन पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने भी इस पर रोक लगा दी. महाराष्ट्र में जून 2014 में तब की कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मराठों को नौकरी और शिक्षा में 16 फीसद आरक्षण देने का अध्यादेश लागू कर दिया था. इसके बाद बीजेपी-शिव सेना गठबंधन सत्ता में आई जिसने इस अध्यादेश को कानून का रुप दे दिया, लेकिन नवंबर 2014 में बम्बई हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी. किन्तु भूपेश सरकार के नये अध्यादेश के जरिए आरक्षण का प्रतिशत बढ़कर 82 फीसदी हो गया है।

आरक्षण (Reservation) का अर्थ है अपना जगह सुरक्षित करना। प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा हर स्थान पर अपनी जगह सुरक्षित करने या रखने की होती है, चाहे वह रेल के डिब्बे में यात्रा करने के लिए हो या किसी अस्पताल में अपनी चिकित्सा कराने के लिए, विधानसभा या लोकसभा का चुनाव लड़ने की बात हो तो या किसी सरकारी विभाग में नौकरी पाने की।

भारत में आरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है। यहां आजादी से पहले ही नौकरियों और शिक्षा में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण देने की शुरुआत हो चुकी थी। इसके लिए विभिन्न राज्यों में विशेष आरक्षण के लिए समय-समय पर कई आंदोलन हुए हैं| जिनमें राजस्थान का गुर्जर आंदोलन, हरियाणा का जाट आंदोलन और गुजरात का पाटीदार (पटेल) आंदोलन प्रमुख हैं।

भारत में आरक्षण की शुरूआत एवं इसके विभिन्न चरण

 भारत में आरक्षण की शुरूआत 1882 में हंटर आयोग के गठन के साथ हुई थी| उस समय विख्यात समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने सभी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा अंग्रेज सरकार की नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की मांग की थी।

1891 के आरंभ में त्रावणकोर के सामंती रियासत में सार्वजनिक सेवा में योग्य मूल निवासियों की अनदेखी करके विदेशियों को भर्ती करने के खिलाफ प्रदर्शन के साथ सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए मांग की गयी।
 1901 में महाराष्ट्र के सामंती रियासत कोल्हापुर में शाहू महाराज द्वारा आरक्षण की शुरूआत की गई। यह अधिसूचना भारत में दलित वर्गों के कल्याण के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने वाला पहला सरकारी आदेश है।
 1908 में अंग्रेजों द्वारा बहुत सारी जातियों और समुदायों के पक्ष में, प्रशासन में जिनका थोड़ा-बहुत हिस्सा था, के लिए आरक्षण शुरू किया गया|
 1909 और 1919 में भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया।
 1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया, जिसमें गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 प्रतिशत, ब्राह्मणों के लिए 16 प्रतिशत, मुसलमानों के लिए 16 प्रतिशत, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों के लिए 8 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।
 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रस्ताव पास किया, (जो पूना समझौता कहलाता है) जिसमें दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की गई थी।
 1935 के भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया था|
 1942 में बी. आर. अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की| उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की।

1946 के कैबिनेट मिशन प्रस्ताव में अन्य कई सिफारिशों के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव दिया गया था।

• 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ| भारतीय संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछले वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए संविधान में विशेष धाराएं रखी गयी हैं। इसके अलावा 10 सालों के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किए गए थे| (हर दस साल के बाद सांविधानिक संशोधन के जरिए इन्हें बढ़ा दिया जाता है)|
• 1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग का गठन किया गया था| इस आयोग के द्वारा सौंपी गई अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन अन्य पिछड़ी जाति (OBC) के लिए की गयी सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया गया।
• 1979 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल आयोग की स्थापना की गई थी| इस आयोग के पास अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के बारे में कोई सटीक आंकड़ा था और इस आयोग ने ओबीसी की 52% आबादी का मूल्यांकन करने के लिए 1930 की जनगणना के आंकड़े का इस्तेमाल करते हुए पिछड़े वर्ग के रूप में 1,257 समुदायों का वर्गीकरण किया था।
• 1980 में मंडल आयोग ने एक रिपोर्ट पेश की और तत्कालीन कोटा में बदलाव करते हुए इसे 22% से बढ़ाकर 49.5% करने की सिफारिश की| 2006 तक पिछड़ी जातियों की सूची में जातियों की संख्या 2297 तक पहुंच गयी, जो मंडल आयोग द्वारा तैयार समुदाय सूची में 60% की वृद्धि है।
• 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया। छात्र संगठनों ने इसके विरोध में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन शुरू किया और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह की कोशिश की थी|

• 1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने अलग से अगड़ी जातियों में गरीबों के लिए 10% आरक्षण की शुरूआत की।
• 1992 में इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को सही ठहराया।
• 1995 में संसद ने 77वें सांविधानिक संशोधन द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तरक्की के लिए आरक्षण का समर्थन करते हुए अनुच्छेद 16(4)(ए) का गठन किया। बाद में आगे भी 85वें संशोधन द्वारा इसमें पदोन्नति में वरिष्ठता को शामिल किया गया था।
• 12 अगस्त 2005 को उच्चतम न्यायालय ने पी. ए. इनामदार और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में 7 जजों द्वारा सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए घोषित किया कि राज्य पेशेवर कॉलेजों समेत सहायता प्राप्त कॉलेजों में अपनी आरक्षण नीति को अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक पर नहीं थोप सकता है। लेकिन इसी साल निजी शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए आरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए 93वां सांविधानिक संशोधन लाया गया। इसने अगस्त 2005 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को प्रभावी रूप से उलट दिया।
• 2006 से केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शुरू हुआ।
• 10 अप्रैल 2008 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी धन से पोषित संस्थानों में 27% ओबीसी (OBC) कोटा शुरू करने के लिए सरकारी कदम को सही ठहराया| इसके अलावा न्यायालय ने स्पष्ट किया कि “क्रीमी लेयर” को आरक्षण नीति के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।

आरक्षण क्यों दिया जाता है?

भारत में सरकारी सेवाओं और संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं रखने वाले पिछड़े समुदायों तथा अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए भारत सरकार ने सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों की इकाइयों और धार्मिक/भाषाई अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को छोड़कर सभी सार्वजनिक तथा निजी शैक्षिक संस्थानों में पदों तथा सीटों के प्रतिशत को आरक्षित करने के लिए कोटा प्रणाली लागू की है। भारत के संसद में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व के लिए भी आरक्षण नीति को विस्तारित किया गया है।

आरक्षण की वर्तमान स्थिति

वर्तमान में भारत की केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में 49.5% आरक्षण दे रखा है और विभिन्न राज्य आरक्षणों में वृद्धि के लिए क़ानून बना सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार 50% से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है, लेकिन राजस्थान और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों ने क्रमशः 68% और 87% तक आरक्षण का प्रस्ताव रखा है, जिसमें अगड़ी जातियों के लिए 14% आरक्षण भी शामिल है।

आरक्षण के संबंध में संवैधानिक प्रावधान:-

• संविधान के भाग तीन में समानता के अधिकार की भावना निहित है। इसके अंतर्गत अनुच्छेद 15 में प्रावधान है कि किसी व्यक्ति के साथ जाति, प्रजाति, लिंग, धर्म या जन्म के स्थान पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 15(4) के मुताबिक यदि राज्य को लगता है तो वह सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।
• अनुच्छेद 16 में अवसरों की समानता की बात कही गई है। अनुच्छेद 16(4) के मुताबिक यदि राज्य को लगता है कि सरकारी सेवाओं में पिछड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो वह उनके लिए पदों को आरक्षित कर सकता है।
• अनुच्छेद 330 के तहत संसद और 332 में राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं।

अंत में हम यह कह सकते हैं कि भारत में आरक्षण की शुरूआत सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को समृद्ध बनाने के लिए हुई थी| लेकिन समय के साथ आरक्षण वोट बैंक की राजनीति का शिकार बनती चली गई। वर्तमान समय में हर राजनितिक दल सत्ता प्राप्ति के लिए आरक्षण शब्द का उपयोग कर रहे हैं, जिसके कारण आरक्षण का मूल उद्देश्य समाप्त होता जा रहा है। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार के नये अध्यादेश से आरक्षण बढ़कर 82% हो गया, अब देखते हैं कि कैसे बचेंगे कानूनी पेंच से???

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छत्तीसगढ़

नशीली दवा की तस्करी स्कूल के पास तस्करी सादे लिबास में पुलिस ने घेरकर पकड़ा

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राजेंद्रनगर एरिया में एक स्कूल के पास तस्कर नशीली दवाएं बेचते पकड़ा गया। उसके पास से 300 से ज्यादा नशीली टेबलेट मिली है। तस्कर 12-14 साल के बच्चों को भी नशीली दवाएं बेचकर उन्हें नशे की आदत डाल रहा था। पुलिस को सूचना मिलने पर गुरुवार को सुबह जवान सादे लिबास में ग्राहक बनकर पहुंचा। उसने नशे की दवा मांगी। जान पहचान न होने के बावजूद तस्कर ने बेधड़क उसे टेबलेट निकालकर दी। उसी समय आस-पास छिपे पुलिस के जवान वहां पहुंच गए और उसे गिरफ्तार कर लिया गया।पुलिस अब तस्कर आशीष वाजपेयी से पूछताछ कर रही है।

पता लगाया जा रहा है कि उसे प्रतिबंधित दवाओं का इतना स्टॉक किसने दिया। प्रारंभिक पूछताछ में आरोपी ने यही बताया कि उसे बाइक में कोई दवाएं लाकर देता है। हालांकि पुलिस को शक है कि उसका किसी मेडिकल स्टोर से संपर्क है। दवा दुकान वाले से सांठगांठ से ही वह नशे का कारोबार कर रहा है। पुलिस हर एंगल से जांच कर रही है। आशीष का मोबाइल जब्त कर लिया गया है। उसका परीक्षण किया जा रहा है। अफसरों के अनुसार मोबाइल की मदद से उसे नशे की टेबलेट देने वाले का लिंक मिल सकता है।अफसरों ने बताया कि राजेंद्र नगर पुलिस को कुछ दिन पहले सूचना मिली थी कि ऋषभ नगर में द्रोणाचार्य स्कूल के पास नशे का कारोबार चल रहा है। कोई चलते फिरते वहां नशे की दवाएं और टेबलेट बेच रहा है।

खबर की पुष्टि के लिए थाने का एक कांस्टेबल सामान्य कपड़े पहनकर वहां पहुंचा। मुखबिर की बतायी हुई जगह पर वह पहुंच गया। वहीं आशीष एक थैला लेकर खड़ा था। कांस्टेबल समझ गया कि वही तस्कर है। उसने गोली मांगी तो वह झट से तैयार हो गया। उसके थैले से 302 नग नशीली गोलियां मिली हैं। 10 की गोली 100-150 में नशे की प्रतिबंधित गोलियों को बेचकर तस्कर तगड़ी कमाई कर रहे हैं। पुलिस की अब तक पूछताछ में पता चला है कि 10 रुपए की टेबलेट को तस्कर 100 से 150 रुपए तक में बेचते हैं। जरूरत देखकर पैसे कम ज्यादा किया जाता है। खरीदी कीमत से कई ज्यादा कमाई होने के कारण ही कुछ दवा दुकान वाले भी तस्करों को दवाएं बेच रहे हैं।

 

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देश - दुनिया

अमेरिकी डॉक्टरों को मिली बड़ी सफलता,मानव शरीर में सुअर की किडनी का सफल ट्रांसप्लांट

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 वैज्ञानिकों को मानव शरीर में सुअर की किडनी ट्रांसप्लांस करने में बड़ी सफलता मिली है। तमाम परीक्षणों के बाद अब डॉक्टरों ने बताया कि कि मानव शरीर में सुअर की किडनी सुचारू रूप से काम कर रही है और ट्रांसप्लांट पूरी तरह से सफल रहा है। यह बड़ी सफलता अमेरिकी डॉक्टरर्स को मिली है, जिससे अब मानव शरीर में ट्रांसप्लांट करने के लिए मानव अंगों की कमी को दूर किया जा सकता है। ऐसा पहली बार संभव हुआ है जब मानव शरीर शरीर में किसी दूसरे प्राणी की किडनी का सफल प्रत्यारोपण किया गया है। हालांकि इससे पहले भी ऐसे कई प्रयोग किए गए हैं लेकिन शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र बाहरी अंगों को स्वीकार नहीं करता है और ट्रांसप्लांट सफल नहीं हो पाता है। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब सुअर की किडनी को मानव शरीर में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया गया है और शरीर ने भी सफलतापूर्णक ग्रहण कर लिया है।

इस पूरी परीक्षण प्रक्रिया में न्यू यॉर्क सिटी में एनवाईयू लैंगन हेल्थ में एक सुअर पर परीक्षण किया गया और उसके जीन को सबसे पहले बदला गया, ताकि मानव शरीर सुअर के अंग को खारिज नहीं करें। इसके बाद सुअर की किडनी को एक ब्रैन डेड मरीज में ट्रांसप्लांट कर दिया गया। डॉक्टरों ने बताया कि ब्रैन डेड मरीज की किडनी ने पूरी तरह काम करना बंद कर दिया था और परिवार के सदस्यों ने भी लाइफ सपोर्ट सिस्टम को हटाने से पहले परीक्षण की अनुमति दे दी थी।
डॉक्टरों ने बताया कि 3 दिन तक सुअर की किडनी को मानव शरीर की रक्त वाहिकाओं से जोड़कर रखा गया था और जब सफल परिणाम दिखे तो किडनी को ट्रांसप्लांट कर दिया गया। अमेरिका में यूनाइटेड नेटवर्क फॉर ऑर्गन शेयरिंग के मुताबिक फिलहाल दुनियाभर में 107000 लोग ऑर्गन ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे हैं और इसमें भी करीब 90 हजार ऐसे लोग हैं, जो सिर्फ किडनी ट्रांसप्लांट कराना चाहते हैं। एक किडनी ट्रांसप्लांट कराने के लिए औसतन करीब 3 से 5 साल का इंतजार करना पड़ता है।

 

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छत्तीसगढ़

सरकारी चावल में मिले प्लास्टिक की दाने, मच गया हड़कंप

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छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सरकारी चावल में मिले प्लास्टिक की दाने जिले में PDS के चावल में प्लास्टिक की तरह दिखने वाले चावल के दाने मिलने से हड़कंप मच गया है। बताया जा रहा है कि, 50 किलो की चावल की बोरियों में लगभग एक से डेढ़ किलो यह दाने मिलाए गए हैं।

इधर, खाद्य अधिकारी ने प्लास्टिक चावल वाली बात को भ्रामक प्रचार कहा है। दरअसल, जिले के धुर नक्सल प्रभावित इलाके गोरला पंचायत में शासकीय उचित मूल्य की दुकान से ग्रामीणों ने चावल लिया।

घर जाकर जब चावल साफ करने व बनाने के लिए बोरियां खोली गईं तो चावल के दाने के साथ प्लास्टिक की तरह दिखने वाले चावल के दाने नजर आने लगे। ऐसे में ग्रामीणों ने इसका वीडियो बना कर सोशल मीडिया में वायरल कर दिया।

अधिकारी बोले – घबराए नहीं, फोर्टिफाईड चावल है

स संबंध में खाद्य अधिकारी बीएल पद्माकर ने बताया कि, उचित मूल्य की दुकान में फोर्टिफाईड चावल जो पोषणयुक्त होता है, उसका वितरण किया जा रहा है।

फोर्टिफाईड चावल में आयरन, विटामिन बी-12, फॉलिक एसिड जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं। इस चावल के उपयोग से कुपोषण में कमी आएगी। यह विशेष प्रकार के पोषण वाला फोर्टिफाईड चावल है। उन्होंने कहा कि किसी भी ग्रामीणों को घबराने की जरुरत नहीं है।

यह चावल महिला एवं बच्चों के लिए लाभकारी है। फोर्टिफाईड चावल में जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्व को विटामिन और खनिज मात्रा को कृत्रिम तरीके से बढ़ाया जाता है। जिस तरह साधारण नमक में आयोडीन मिलाकर उसे आयोडाइज्ड बनाया जाता है। चावल को फोर्टिफाईड बनाना भी इसी तरह की एक प्रक्रिया है।

इस प्रक्रिया में चावल की पोषण गुणवत्ता में सुधार लाया जाता है। बीएल पद्माकर ने कहा कि, सितंबर के महीने से इस चावल का भंडारण किया गया है। फिलहाल मामले की जांच की जा रही है।

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