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WORLD RICHEST VILLAGE: दुनिया का एक ऐसा गाँव जहां हर शख्स है अमीर, आइये देखते है कौन सा है वो गाँव….
World’s Richest Village: दुनिया में कई ऐसी अनोखी जगहे हैं जिनके बारे में बेहद कम लोग ही जानते हैं। दुनिया में एक ऐसा गांव है जिसके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे। गांव का नाम सुनते ही गांव की कच्ची सड़कें, कच्चे मकान और खेतों की तस्वीरें हमें नजर आने लगती है। लेकिन अब गांवों की हालत काफी सुधर गई है और बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। लेकिन दुनिया में एक गांव है जहां पर लोग लाखों में कमाई करते हैं और उनके पास आलीशान मकान है। इस गांव ने बड़े-बड़े शहरों को भी पीछे छोड़ दिया है।
माना जाता है कि दुनिया का सबसे अमीर गांव है।
यह गांव चीन के जियांगसू राज्य में स्थित है जिसका नाम वाक्शी है। इस गांव को चीन का सबसे अमीर गांव कहा जाता था। बताया जाता है कि इस गांव के रहने वालों की लाइफस्टाइल ने शहरों में रहने वाले बड़े-बड़े रईसों को पीछे छोड़ दिया है।
आइए जानते हैं इस गांव के बारे में…
चीन के इस गांव में आपको किसी भी देश की राजधानी की तरह सुविधाएं मिल सकती हैं। यह जानकर आपको यकीन नहीं हो रहा होगा, लेकिन यह बिल्कुल सच है। इस गांव की सुविधाओं को देखकर लोग सुपर विलेज भी कहते हैं। इस गांव में स्काईस्कैपर है जो 72 मंजिला हैं। इसके साथ ही यहां पर हेलीकॉप्टर टेक्सिस, थीम पार्क और लग्जरी विला भी हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस गांव के 2,000 निवासियों में से हर शख्स के पास 1 करोड़ 10 लाख रुपये से ज्यादा है। यहां पर हर कोई एक विला में रहता है और सभी के पास लक्जरी कारें शामिल हैं। इस गांव में करीब दो हजार लोग रहते हैं।
यहां पर लोग लग्जरी लाइफस्टाइल जीते हैं।
चीन के वाक्शी गांव में स्टील और शिपिंग जैसी प्रमुख कंपनियां हैं, गांव को ज्यादातर घर एक जैसे बने हैं। ये आलीशन घर देखने में किसी होटल से कम नहीं लगते हैं। इस गांव की सड़कें लोगों को आकर्षित करती हैं। पहले यह गांव कभी गरीब था। कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय सचिव वू रेनाबो को इस गांव को इस कामयाबी के शिखर तक पहुंचाने का श्रेय जाता है। चीन का वाक्शी गांव एक कृषि प्रधान देश हैं, लेकिन किसानों के एक आइडिया ने इसे दुनिया के अमीर गांवों में शामिल करा दिया। मीडिया रिपोर्ट में इस गावों को 60 के दशक में बसाया गया था। यहां पर सभी लोग सामूहिक खेती करने लगे। गांव में लौह और इस्पात उद्योग भी लगाए गए। 21वीं सदी की शुरुआत तक यहां 100 से अधिक कंपनियां हो गईं। इनमें लोहा, इस्पात और तंबाकू के कारोबार से संबंधित कंपनियां थीं।
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अजब-गजब: दुनिया की एक ऐसी व्हिस्की जिसकी कीमत जान आप भी हो जायेंगे हैरान…
सिंगल माल्ट व्हिस्की को दुनिया की सबसे महंगी व्हिस्की में गिना जाता है। इसे बनाने में काफी मेहनत और समय लगता है। यही एक बड़ी वजह है, जिसके चलते सिंगल माल्ट व्हिस्की को देश दुनिया में काफी पसंद किया जाता है। इसी कड़ी में आज हम इस व्हिस्की के बारे में जानेंगे। दुनिया भर में इसके कई वैरायटीज उपलब्ध हैं, जिन्हें लोग खूब पसंद करते हैं। इन वैरायटीज के प्राइस भी अलग अलग होते हैं। इस व्हिस्की की कीमत जानने के बाद आप हैरान हो जाएंगे। सिंगल माल्ट के एक बोतल का दाम इतना है कि उसमें आप लाखों का घर खरीद सकते हैं। इसे बनाने के लिए जौ का इस्तेमाल किया जाता है। सिंगल माल्ट को बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले जौ को जमीन के पानी में मिलाया जाता है। उसके बाद इसे 64 सेंटीग्रेट तापमान पर गर्म किया जाता है।
इसी सिलसिले में आइए जानते हैं इस खास व्हिस्की के बारे में –
सिंगल माल्ट व्हिस्की को बनाना कोई आसान काम नहीं है। इसे तैयार करने में काफी लंबा समय लगता है। सर्वप्रथम जौ को पानी में मिलाने के बाद इसको इतना गर्म किया जाता है जब तक ये चीनी में ना बदल जाए। मीठे लिक्विड में तैयार हुए इस वोर्ट को बाद में ठंडा किया जाता है।
उसके बाद इसे वॉश बैक्स में डाला जाता है तत्पश्चात उसको डिस्टिलेशन के लिए कॉपर वॉश स्टिल्स में गर्म किया जाता है। उसके बाद दोबारा उसे स्पिरिट स्टिल्स में गर्म किया जाता है। सिंगल माल्ट व्हिस्की को बनाने में कई सालों की मेहनत लगती है। बात अगर इसकी कीमत की करें तो ये करीब 30,000 अमेरिकी डॉलर तक हो सकती है। कुछ समय पहले सिंगल माल्ट मैकलान 1926 की एक बॉटल 1.5 मिलियन डॉलर में बिकी थी।
ये व्हिस्की करीब 30 साल पुरानी होती हैं। इस कारण 30 से 40 फीसद अल्कोहल इस दौरान इवैपोरेट हो जाता है। व्हिस्की जितनी पुरानी होती है, उसकी कीमत भी उतनी ही ज्यादा होती है। ऐसा उसके एंजल्स शेयर के कारण होता है। एंजल्स शेयर लिक्विड का वो प्राकृतिक वाष्पीकरण होता है, जो समय के साथ साथ पर्यावरण में घुलता जाता है। इसी वजह से व्हिस्की जितनी पुरानी होती है, उतनी ही शानदार भी।
यही एक बड़ी वजह है, जिसके चलते सिंगल माल्ट व्हिस्की की कीमत काफी ज्यादा है। इस व्हिस्की का एंजल्स शेयर ही उसको काफी खास बनाता है। बात अगर स्कॉटलैंड की करें तो वहां का मौसम काफी ठंडा रहता है। इस कारण वहां पर वाष्पीकरण की रफ्तार काफी धीमी होती है। इसी वजह से स्कॉटलैंड में व्हिस्की को 60 सालों तक रखा जाता है, जिसके चलते उसका एंजल्स शेयर काफी कम हो जाता है। इस कारण सालों बाद प्रोडक्ट काफी बेहतरीन बन कर सामने आता है।
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जाने क्यों? यहां के लोग मुर्गियों को खिलते है भांग, वजह जान आप भी हो जायेगे हैरान…
Ajab-Gajab: दुनियाभर में आए दिन अजीबोगरीब खबरें सुनने को मिलती हैं। अब इस बीच एक बार फिर ऐसी ही खबर सामने आई है जिसके बारे में जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे। आमतौर पर नशे के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली भांग कई देशों में बैन है, लेकिन थाईलैंड में किसान अपनी पालतू मुर्गियों को भांग खिला रहे हैं। इसके पीछे की वजह भी अजीबोगरीब है। यहां के किसान एंटीबायोटिक्स से बचाने के लिए मुर्गियों को भाग खिला रहे हैं। थाईलैंड के उत्तर में शहर लम्पांग में पोल्ट्री फॉर्म के किसानों ने वैज्ञानिकों के कहने पर ऐसा करना शुरू किया है। चियांग माई यूनिवर्सिटी के कृषि विभाग के वैज्ञानिकों की सलाह पर इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई है। नेशन थाईलैंड में सबसे पहली रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। किसानों ने अपनी मुर्गियों को एंटीबायोटिक्स लगवाया था।
आइए जानते हैं कि आखिर वहां के किसान ऐसा क्यों कर रहे हैं।
उनका कहना है कि मुर्गियों को एवियन ब्रॉन्काइटिस नामक की बीमारी हो गई। इसके बाद उन्होंने मुर्गियों को पीपीपी के तहत भांग वाली डाइट रखा। यहां पर कुछ फार्मों के पास भांग उगाने का लाइसेंस है। वह जानना चाहते थे कि भांग की वजह से मुर्गियों की सेहत पर क्या फायदा होता है। पीपीपी एक्सपेरिमेंट के तहत एक हजार से ज्यादा मुर्गियों को अलग-अलग मात्रा में भांग खिलाया गया। ऐसा इसलिए कि उन पर अलग-अलग होने वाले असर को देखा जा सके। इनमें कुछ मुर्गियों को भाग को पानी में घोलकर दिया गया। इसके बाद वैज्ञानिकों ने इनके ऊपर नजर रखा था कि मुर्गियों के विकास, सेहत और उनसे मिलने वाले मांस और अंडों पर इसका क्या असर होता है।
एक्सपेरीमेंट का कोई डेटा पब्लिश नहीं हुआ
जिन मुर्गियों ने भांग खाया था उनके मांस और व्यवहार में कोई फर्क नहीं दिखा है। हालांकि इस एक्सपेरीमेंट का अभी तक कोई डेटा पब्लिश नहीं किया गया है। लेकिन उन्होंने दावा किया है कि भांग खाने वाली कुछ मुर्गियों को एवियन ब्रॉन्काइटिस नाम की बीमारी हो रही है वो बहुत कम मात्रा में। लेकिन उनमें मिलने वाले मांस पर कोई असर नहीं पड़ा और न ही मुर्गियों में कोई बदलाव नजर आया है।
स्थानीय लोगों ने भांग खाने वाली मुर्गियों को खाने में इस्तेमाल भी किया है, लेकिन उनको कोई परेशानी नहीं हुई। इस एक्सपेरिमेंट के सफल होने के बाद किसान खुद इस प्रोजेक्ट में हिस्सा ले रहे हैं। किसानों का कहना है कि भांग से बिना किसी नुकसान के अगर मुर्गियां एंटीबायोटिक और बीमारियों से बच सकती हैं, तो इसमें कोई परेशानी नहीं है।
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रहस्यों से भरा: देश का एक ऐसा गाँव, जहां उल्टी दिशा की ओर चलती है घड़ी की सुई, आइये देखे कौन सा है वो गाँव…
भारत में ऐसे कई समुदाय हैं, जो लीक से हटकर प्रथाओं को मानते हैं. आम दुनिया में जो चीजें नॉर्मल हैं, वो इन समुदायों में वर्जित है. उसकी जगह लीक से हटकर चीजें की जाती हैं. ऐसा ही एक समुदाय भारत के छत्तीसगढ़ में है. इस समुदाय के लोग जिस गांव में रहते हैं, वहां की घड़ी के कांटे उलटी दिशा में चलते हैं. साथ ही 12 बजे के बाद 11 बजते हैं, ना कि
1. इसकी वजह भी समुदाय के लोगों के पास है, जिसे वो सही मानते हैं.
दुनिया में जितनी भी घड़ियां चलती हैं, सबकी दिशा बायीं से दाईं और होती है. बारह बजे के बाद एक बजता है, फिर दो और फिर तीन. लेकिन भारत के छत्तीसगढ़ में एक ऐसा गांव है, जहां की घड़ियां दाएं से बायीं और चलती हैं. जब से इस गांव में घड़ी आई है, तबसे सारी घड़ियां इसी तरह एंटी क्लॉकवाइज चलती हैं. ये है छत्तीसगढ़ के कोरबा के पास आदिवासी शक्ति पीठ से जुड़े गोंड आदिवासी समुदाय. ये हमेशा से उलटी दिशा की घड़ी का इस्तेमाल करते हैं.प्रकृति से जुड़ा है कारण
उलटी दिशा की घड़ी के इस्तेमाल को लेकर आदिवासियों ने कहा कि उनकी ही घड़ी सही चलती है. समुदाय ने अपनी घड़ी का नाम गोंडवाना टाइम रखा है. समुदाय का कहना है कि धरती दाएं से बायीं दिशा में घूमती है. साथ ही चन्द्रमा से लेकर सूरज और तारे भी इसी दिशा में घूमते हैं. इसके अलावा तालाब में पड़ने वाला भंवर भी इसी दिशा में घूमता है. यही वजह है कि लोगों ने घड़ी की दिशा यही रखी है.30 समुदाय फॉलो करते है ये घड़ी
गोंड समुदाय के लोगों के अलावा गोंडवाना घड़ी को अन्य 29 समुदाय के लोग फॉलो करते हैं. आदिवासियों का कहना है कि प्रकृति का चक्र जिस दिशा में चलता है, उसी दिशा में उनकी घड़ी उनकी घड़ी चलती है. आदिवासी समुदाय के ये लोग महुआ, परसा और अन्य पेड़ों की पूजा करते हैं. छत्तीसगढ़ के इस इलाके में करीब दस हजार परिवार रहते हैं. ये सभी लोग उलटी घड़ी का पालन करते हैं.
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