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गर्भवती महिलाओं को कोविड न होने के बावजूद भी उनकी हालत बिगड़ने का खतरा, गर्भवती महिलाओं पर इंग्लैंड में हुई रिसर्च अलर्ट

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गर्भवती महिलाओं पर इंग्लैंड में हुई रिसर्च अलर्ट करने वाली है। रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है, गर्भवती महिलाओं को कोविड न होने के बावजूद भी उनकी हालत बिगड़ने का खतरा है। महामारी का तनाव उनकी प्रेग्नेंसी में समस्याएं पैदा कर सकता है। यह बात महामारी में 115 गर्भवती महिलाओं पर हुई रिसर्च में सामने आई है।

2020 में हुई गर्भनाल की जांच हुई

रिसर्च के लिए शोधकर्ताओं ने 2020 में गर्भवती महिलाओं की गर्भनाल जांची। रिपोर्ट में सामने आया कि जिन महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान कोविड हुआ था उनकी गर्भनाल में तीन गुना समस्याएं दिखीं। वहीं, संक्रमित न होने वाली महिलाओं के गर्भनाल में हुई दिक्कत के दोगुना मामले सामने आए।

गर्भनाल में दिक्कत होने के मायने क्या हैं?

कोख में पल रहा बच्चा मां से एक गर्भनाल के जरिए जुड़ा होता है। इस गर्भनाल के जरिए मां से ऑक्सीजन और पोषक तत्व बच्चे के हर अंग तक पहुंचता है। यह सब ब्लड सर्कुलेशन से संभव होता है। इसमें किसी तरह की गड़बड़ी होने पर सीधा असर बच्चे की सेहत पर पड़ता है। इस रिसर्च में गर्भवती महिलाओं में ऐसी ही दिक्कतें सामने आई हैं।

गर्भवती महिलाओं को किन दिक्कतों से जूझना पड़ा

महामारी की पहली लहर में कनाडा, फ्रांस और यूके से गर्भवती महिलाओं को रिसर्च में शामिल किया गया। इनकी गर्भनाल और अम्बलिकल कॉर्ड के सैम्पल लिए गए। इनमें से एक तिहाई महिलाएं संक्रमित थीं। वहीं, 50 फीसदी तक ऐसी महिलाएं थी जिन्हें संक्रमण नहीं हुआ था। रिसर्च के दौरान सामने आया कि इनमें फाइब्रिन प्रोटीन का स्तर बढ़ा हुआ था। यह प्रोटीन शरीर में रक्त के थक्के जमाता है। यह थक्के बच्चे के विकास में बाधा पैदा करते हैं और शरीर में कैल्शियम की मात्रा बढ़ाते हैं।

शोधकर्ता कहते हैं, महामारी के कारण ऐसी महिलाओं में तनाव पैदा हुआ जिससे शरीर में सूजन हुई और अंगों में कई बदलाव हुए। इससे प्रेग्नेंसी में दिक्कतें बढ़ीं। मां और बच्चे पर किस हद तक यह तनाव बुरा असर डाल सकता है, इस पर और रिसर्च किए जाने की जरूरत है।

रिसर्च करने वाली इंग्लैंड की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता अलेक्जेंडर हेजेल का कहना है, महिलाओं की गर्भनाल में जो समस्या दिखी है वो महामारी के दौरान ही देखी गई है। लम्बे समय तक इस तनाव के असर को समझने की जरूरत है।

प्रेग्नेंसी के दौरान कोविड हुआ तो?

सैन फ्रैन्सिस्को की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है, प्रेग्नेंसी के दौरान कोरोना का संक्रमण होने पर बच्चे के समय से पहले जन्म लेने का खतरा बढ़ता है। संक्रमित महिलाओं में 32 हफ्ते से पहले बच्चे की प्री-मैच्योर डिलीवरी हो सकती है। प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं में कोविड से संक्रमित होने का खतरा 60 फीसदी तक ज्यादा रहता है।

शोधकर्ताओं ने कैलिफोर्निया में जुलाई 2020 से जनवरी 2021 के बीच जन्मे बच्चों का बर्थ सर्टिफिकेट देखा। इस दौरान 2,40,157 बच्चों का जन्म हुआ। इनमें 9 हजार बच्चों की मांओं को प्रेग्नेंसी के दौरान कोरोना हुआ था। रिसर्च में सामने आया कि सामान्य गर्भवती महिलाओं में 8.7 फीसदी और कोविड से जूझने वाली गर्भवती महिलाओं में 11.8 फीसदी बच्चों की प्री-मैच्योर डिलीवरी हुई।

बीपी और मोटापा बढ़ा तो रिस्क और ज्यादा

शोधकर्ताओं का कहना है, प्रेग्नेंट महिलाओं में कोविड के संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे में जो संक्रमित महिलाएं हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और मोटापे से जूझती हैं, उनमें प्री-मैच्योर डिलीवरी होने का खतरा 160 फीसदी तक और बढ़ जाता है।

 

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त्रिफला चूर्ण खाने के तीन बड़े नुक्सान ये रहे जानिए

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Triphala Churna side Effects: आयुर्वेदिक और हर्बल में उपचार के लिए त्रिफला का इस्तेमाल सदियों से किया जा रहा है. त्रिफला के अगर फायदे हैं, तो कुछ नुकसान भी, जो कई तरह के हो सकते हैं.

Triphala Churna side Effects-त्रिफला का नाम तो हर किसी ने सुना होगा. कई तरह की बीमारी के दौरान भी इसे लेते हुए देखा होगा. सदियों से त्रिफला को आयुर्वेदिक और हर्बल उपचार के तौर में इस्तेमाल में लाया जा रहा है. आंवला, बिभिताकि और हरीताकी ये तीन फलों से मिलकर त्रिफला को तैयार किया जाता है. आयुर्वेद के अनुसार, त्रिफला खाने से कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर कंट्रोल में किया जा सकता है. त्रिफला खाने से हेल्थ को कई फायदे मिल सकते हैं. त्रिफला बाजार में चूर्ण, कैप्सूल और जूस के अर्क के रूप में आसानी से मिल जाता है. त्रिफला चूर्ण के वैसे तो कई फायदे हैं, लेकिन इसे खाने से पहले अगर सावधानी नहीं बरती गई तो इसके नुकसान भी झेलने पड़ सकते हैं.

त्रिफला चूर्ण के नुकसान

हो सकता है ब्लड शुगर लो
स्टाइलक्रेज़ के मुताबिक, त्रिफला में डायबिटीज से लड़ने के गुण होते हैं. जो मरीज पहले से ही डायबिटीज कि दवाएं ले रहे हैं, उन्हें त्रिफला खाने से हाइपोग्लाइसीमिया हो सकता है, जो ब्लड शुगर को काफी लो कर सकता है. अगर डायबिटीज के मरीज हैं तो त्रिफला चूर्ण खाने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें.

दवाओं का असर हो सकता है कम
त्रिफला कई तरह की दवाओं का असर कम कर सकता है, जिससे लिवर को नुकसान पहुंच सकता है. दवाओं के साथ त्रिफला का सेवन करने से पहरेज करना चाहिए. इसके अलावा मूड खराब, एनर्जी में कमी और नींद की समस्या भी हो सकती है.

प्रेगनेंसी में हो सकती है समस्या
प्रेगनेंसी के दौरान त्रिफला चूर्ण के सेवन से कई तरह की समस्याएं देखने को मिल सकती हैं. इससे मिसकैरेज तक हो सकता है. त्रिफला चूर्ण के सेवन से पहले महिलाओं को डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए. त्रिफला चूर्ण को खाने से पहले इसकी सही मात्रा के बारे में जानकारी होना जरूरी है.

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आंसू निकलना भी होता है फायदेमंद जानिए, कैसे

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Eye Health: अभी तक आपने सुना होगा कि हंसना सेहत के लिए फायदेमंद होता है लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं कि रोने के भी बहुत से फायदे हैं.

Eye Care Tips: अगर हंसना-मुस्कराना सेहत (Health) के लिए अच्छा माना जाता है तो रोना भी कहीं से खराब नहीं. जितने ज्यादा फायदे हंसने के है, रोने के भी उतने ही फायदे (Benefits of Tears) माने जाते हैं. फिर चाहे आप किसी मूवी या सीरियल को देख इमोशनल हो रहे हैं या फिर प्याज काटते वक्त आपके आंसू निकल रहे हों.

रिसर्च कहती है कि आपकी हेल्दी आंखों के लिए आंसू काफी जरूरी है. यह आपकी आंखों को गीला और चिकना रखते हैं. इंफेक्शन और गंदगी से भी बचाते हैं. ये आपकी आंखों को साफ रखते हैं और हेल्दी भी बनाते हैं. तो यहां जानिए आखिर क्यों निकलते हैं आंसू और इसके क्या-क्या होते हैं फायदे..

आंसू क्यों निकलते हैं?
इंसान के रोने के पीछे पूरी तरह से साइंस (Science) काम करता है. जब हम या आप इमोशनल (Emotional) होते हैं, प्याज का कोई तीखी चीज काटते हैं, आंखों में कुछ चला जाता है तब आंसू निकलते हैं. आंसू आंख की अश्रु नलिकाओं से निकलने वाला तरल पदार्थ है, जो पानी और नमक के मिश्रण से बना होता है. इसमें तेल, बलगम और एंजाइम नामक केमिकल भी पाया जाता है, जो कीटाणु को मार हमारी आंखों को हेल्दी रखता है.

तीन तरह के होते हैं आंसू
आप नहीं जानते होंगे कि इंसान की आंखों से तीन तरह के आंसू निकलते हैं. चलिए बताते हैं
Basal Tears- इस तरह के आंसू आंखें झपकने पर निकलते हैं. ये आंखों में नमी बनाए रखने का काम करते हैं. ये नॉन-इमोशनल आंसू होते हैं.
Reflex Tears– ये भी नॉन-इमोशनल आंसू ही होते हैं. ये आंखों के हवा, धुएं, घूल के पड़ने से आते हैं.
Emotional Tears- दुख, निराशा, गम होने पर जो आंसू निकलते हैं वे इमोशनल आंसू होते हैं.
आंसुओं के फायदे ही फायदे
नीदरलैंड्स की स्टडी के मुताबिक रोने से आप रिलैक्स फील करते हैं और आपका मूड अच्छा होता है.
आंसू में लाइसोजोम (Iysozyme) नाम का फ्लूइड पाया जाता है, जिसमें एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं. यह हमारी आंखों को संक्रमण से बचाता है और आंखों को साफ करता है.

रोने से इमोशन कंट्रोल होती हैं और मानसिक तनाव से राहत मिलती है
रोने से बॉडी में ऑक्सीटोसिन और एंडोर्फिन हॉर्मोन बनते हैं जो शारीरिक और भावनात्मक दर्द से आराम दिलाते हैं.
आंसू निकलनेसे आंखें सूखती नहीं और उसकी नमी बरकरार रहती  है, जिससे आखों की रोशनी बढ़ती है.
जब कोई शख्स आंखें झपकाता है, तो बेसल टियर निकलती हैं तो म्यूकस में ब्रेन को सूखने से बचाते हैं.
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क्या आप भी AC का टेंपरेचर 24 -25 से कम रखते है तो हो जाइये सावधान

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Best Temperature For Ac: गर्मी में एसी चलाने से राहत मिल जाती है, लेकिन ज्यादा कम तापमान पर एसी चलाना सेहत को नुकसान देता है, जानिए कितने तापमान पर चलाना चाहिए AC और ज्यादा AC में रहने के नुकसान.

AC Temperatures Harmful: बारिश के मौसम में ह्यूमिडिटी सबसे ज्यादा परेशान करती है. ऐसे में पसीना और चिपचिपाहट से सिर्फ एसी में बैठने पर ही राहत मिलती है. कुछ लोगों को इतनी गर्मी लगती है कि वो एसी के ठीक सामने बैठना या सोना ही पसंद करते हैं और एसी का टेंपरेचर भी 18-20 ही रखते हैं. अगर आप भी ऐसा करते हैं तो सावधान हो जाएं. एसी को बहुत कम टेंपरेचर पर चलाना आपकी सेहत पर भारी पड़ सकता है. इससे आपके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. आइये जानते हैं एसी को किस टेंपरेचर पर चलाना चाहिए और ज्यादा कम पर एसी चलाने से क्या नुकसान होते हैं.

24-25 डिग्री पर ही एसी चलाएं
एक्सपर्ट्स का कहना है कि आपको एसी 24-25 डिग्री पर चलाना चाहिए. इससे कम एसी चलाकर रखना आपके स्वास्थ्य पर विरपरीत असर डालता है. सर्दी हो या गर्मी बाहर से तापमान से कमरे या घर के तापमान में एक्सट्रीम बदलाव नहीं होना चाहिए. हमारे शरीर के तापमान की तुलना में बहुत कम तापमान पर सेट किए गए एसी कमरे से नमी को गायब कर देते हैं. जिससे त्वचा को नुकसान होता है. ऐसे में त्वचा से पसीना कम निकलता है और ऑयल ज्यादा निकलने लगता है. इससे मुँहासे, समय से पहले झुर्रियाँ और त्वचा में जलन पैदा हो सकती है. एक्सट्रीम हाई टेंपरेचर में त्वचा के पोर्स बंद हो सकते हैं, जिससे स्किन के फंक्शन पर असर पड़ता है.

कम टेंपरेचर पर एसी चलाने के नुकसान

ज्यादा तापमान पर एसी चलाने से शरीर का थर्मल रेगुलेशन प्रभावित होता है.
ठंडी और ड्राई हवा में वायरस और जर्म्स जल्दी पैदा होते हैं और फैलते हैं.
ज्यादा कम एसी चलाने से अस्थमा और माइग्रेन की समस्या बढ़ सकती है.
जो लोग ज्यादा AC में रहते हैं वो समय से पहले बूढ़े लगने लगते हैं. ऐसे लोगों की त्वचा पर जल्दी झुर्रियां आने लगती हैं.
बालों का झड़ना, नाक बंद होना और गला सूखने जैसी परेशानियां होती हैं.

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