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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा राफेल विमान की पूजा और नींबू टोटका पर CM बघेल ने ली चुटकी

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छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दशहरे के दिन देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा राफेल विमान की पूजा और नींबू टोटका को लेकर सीएम बघेल ने चुटकी ली है. सीएम ने कहा कि पहली बार तो हथियार नहीं खरीदे जा रहे हैं और वैसे भी राफेल हथियार नहीं बल्कि वायुयान है. दशहरे के दिन शस्त्र की पूजा की जाती है जितने भी वाहन या विमान हैं उसे लक्ष्मी माना जाता है और उनकी पूजा दीपावली के दिन की जाती है. बीजेपी इसे मनगढ़ंत रूप दे रही है.

केंद्र सरकार पर CM ने खड़ा किया सवाल

सीएम बघेल ने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि “केंद्र सरकार ने 1 लाख 74 हजार करोड़ रुपए कॉर्पोरेट सेक्टर को दे दिए, जिससे किसका भला या फायदा हुआ, क्या उस पर कभी डिबेट होगी. हमने छत्तीसगढ़ में 20 हजार करोड़ रुपए किसानों को दिया, जिससे किसान मंदी से उबर गए.”

देश के कई राज्यों में पार्षदों के माध्यम से ही चुनाव होते हैं: CM

वहीं सीएम ने जल्द ही छत्तीसगढ़ में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव में पार्षदों  द्वारा अध्यक्ष चुने जाने को लेकर कहा कि जनपद और जिला पंचायत में इसी तरह से चुनाव होते हैं. देश के कई राज्यों में पार्षदों द्वारा नगरीय निकायों के अध्यक्ष चुने जाते हैं. इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार ने एक कमेटी बनाई है, कमेटी की रिपोर्ट के हिसाब से सरकार निर्णय लेगी.

बता दें कि सीएम बघेल में शनिवार को महासमुंद के बसना प्रवास के दौरान ये बातें कहीं. गढ़फुलझर में आयोजित रामचंडी दिवस और कोलता समाज के वार्षिक सम्मेलन में शिरकत करने आए थे.

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आधार  कार्ड को  वोटर आईडीई से लिंक करने का कानून सरकार जल्द कर सकती है लागु, पढ़े पूरी खबर…

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आधार को मतदाता सूची से जोड़ने का नियम जल्द ही सरकार द्वारा जारी किए जा सकते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने कहा है कि आधार विवरण शेयर करना मतदाताओं पर निर्भर करेगा कि वे वोटर आईडी को आधार से जोड़ना चाहते हैं कि नहीं, लेकिन ऐसा नहीं करने वालों को “पर्याप्त कारण” देना होगा।

पीटीआई को दिए गए एक इंटरव्‍यू में उन्होंने कहा कि सीईसी के रूप में उनके कार्यकाल में दो प्रमुख चुनावी सुधार हुए हैं, जो 18 वर्ष के मतदाताओं के नामांकन के लिए एक के बजाय एक वर्ष में चार तिथियों का प्रावधान है और फर्जीवाड़ा की जांच के लिए आधार को मतदाता सूची से जोड़ना है। शनिवार शाम को पद छोड़ने वाले चंद्रा ने यह भी कहा कि पोल पैनल ने चुनाव के दौरान पांच राज्यों में टीकाकरण अभियान को तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।चार कट-ऑफ डेट की सुविधा
उन्‍होंने जानकारी दी कि हर साल की केवल 1 जनवरी की कट-ऑफ तारीख थी, लेकिन अब अब चार तारीखें होंगी। इन लोगों को 18 वर्ष की आयु पूरी करने पर पंजीकरण कराने और सुधार कराने का अधिकार दिया गया है। चार कट ऑफ डेट संसद में पारित एक विधेयक का हिस्‍सा है, जिसमें वोटर आईडी को आधार से जोड़ने के लिए कहा गया है।

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जॉब

जॉब मार्केट के लिए अच्छी खबर, अप्रैल माह में देश में 88 लाख लोगों को मिला रोजगार..

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सीएमआईई के प्रबंधन निदेशक व सीईओ महेश व्यास ने बताया कि अप्रैल में देश की श्रम शक्ति (labour force) में 88 लाख का इजाफा हुआ। देश में कुल श्रम शक्ति बढ़कर 43.72 करोड़ हो गई।

देश के जॉब मार्केट को लेकर अच्छी खबर आई है। अप्रैल माह में देश में 88 लाख लोगों को रोजगार मिला है। यह महामारी के बाद एक माह में सर्वाधिक नौकरियां मिलीं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकानॉमी (CMIE) की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।

हालांकि रोजगार की मांग की तुलना में उपलब्ध नौकरियां अपर्याप्त रहीं। सीएमआईई के प्रबंधन निदेशक व सीईओ महेश व्यास ने बताया कि अप्रैल में देश की श्रम शक्ति (labour force) में 88 लाख का इजाफा हुआ। देश में कुल श्रम शक्ति बढ़कर 43.72 करोड़ हो गई। व्यास के अनुसार महामारी के बाद के अप्रैल में रोजगार में सर्वाधिक बढ़ोतरी हुई है।

उन्होंने बताया कि मार्च में देश में 42.84 करोड़ लोग रोजगार प्राप्त थे। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021-22 में नौकरियों में औसत मासिक वृद्धि दो लाख रही। सीएमआईई का कहना है कि श्रम शक्ति में 88 लाख की वृद्धि तभी संभव हुई जबकि कुछ कामकाजी उम्र के लोग जो नौकरियों से बाहर थे, अप्रैल में रोजगार पाने में कामयाब रहे।

इसलिए हुई बढ़ोतरी
रिपोर्ट में कहा गया है कि कामकाजी उम्र की आबादी प्रति माह 20 लाख से अधिक नहीं बढ़ सकती है। इससे आगे किसी भी वृद्धि का मतलब है कि जो लोग नौकरी से बाहर हुए थे, उन्हें पुन: रोजगार मिल गया है। अप्रैल में नौकरियों में 88 लाख की वृद्धि पिछले तीन महीनों के दौरान 1.20 करोड़ की गिरावट के बाद आई है। व्यास ने कहा कि श्रम बाजार गतिशील रहता है क्योंकि रोजगार की एक निश्चित समय पर मांग बढ़ने पर निर्भर करता है।

उद्योगों में सर्वाधिक 55 लाख नौकरियां, कृषि में घटा रोजगार
अप्रैल में रोजगार में वृद्धि उद्योग और सेवा क्षेत्रों में हुई। आंकड़ों के अनुसार उद्योग जगत में 55 लाख नौकरियां दी गईं। उद्योग के भीतर मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में 30 लाख रोजगार सृजित हुए, जबकि कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में लगभग 40 लाख। सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि कृषि क्षेत्र में रोजगार में 52 लाख की गिरावट आई है।

नौकरियां बेहतर गुणवत्ता की होने की संभावना नहीं
रिपोर्ट के अनुसार कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर में कमी की वजह रबी की कटाई के सीजन की समाप्ति हो सकती है। गेहूं के उत्पादन में गिरावट ने भी इसमें योगदान दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नए उद्योग की नौकरियां बेहतर गुणवत्ता की होने की संभावना नहीं है, क्योंकि वृद्धि मुख्य रूप से दैनिक ग्रामीणों और छोटे व्यापारियों के बीच हुई है।

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छत्तीसगढ़

बंद हुआ गेहूं का सप्लाई, जाने आगे क्या होगी देश की स्थिति..

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नई दिल्ली: रोटी, ब्रेड, पास्ता, पिज्जा, बर्गर… जैसी खाने की कई चीजें गेहूं से बनती है. गेहूं दुनिया के लोगों की खाने की थाली में कोई न कोई रूप में मौजूद रहता ही रहता है. लेकिन गेहूं की उपज दुनिया के हर हिस्से में नहीं होती है. इसलिए गेहूं की सप्लाई का बैलेंस कायम रखने के लिए इसका आयात-निर्यात होता रहता है. लेकिन पिछले ढाई महीनों से चल रहे रूस-यूक्रेन की लड़ाई ने गेहूं के सप्लाई चेन को डगमगा दिया है. यूक्रेन और रूस दोनों ही दुनिया के बड़े गेहूं उत्पादक देश हैं और दोनों ही युद्ध की विभीषिका झेल रहे हैं.

 

रूस ने ब्लैक सी में यूक्रेन के बंदरगाहों की नाकेबंदी और घेराबंदी कर रखी है. लिहाजा यहां से कई हफ्तों से यूरोप को गेहूं की सप्लाई नहीं हो पा रही है. इससे विश्व बाजार में गेहूं की कीमतें बढ़ने लगी है. ऐसी ही परिस्थिति में गेहूं का एक और बड़ा उत्पादक देश भारत ने भी गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दिया है. इससे पहले से ही डवांडोल स्थिति के और भी चरमराने का अंदेशा पैदा हो गया है. रूस दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक देश है. यूक्रेन और रूस मिलकर दुनिया के एक चौथाई गेहूं का निर्यात करते हैं और यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के करोड़ों लोगों का पेट भरते हैं. इन दोनों देशों से सूरजमुखी का बीज, बार्ली और मक्के की सप्लाई भी दुनिया को होती है.

 

अब इसे राष्ट्रपति पुतिन की प्लानिंग कहें या संयोग लेकिन रूस ने यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू होने से पहले ही साल 2021 में गेहूं के निर्यात को सीमित कर दिया है. रूस ने गेहूं के निर्यात को कम करने के लिए निर्यात टैक्स लगा दिया है. रूस का तर्क है कि घरेलू बाजार में खाद्यान्न कीमतों पर नियंत्रण के लिए उसने ऐसा कदम उठाया है. रूस के इस कदम से दुनिया के खाद्य बाजार में गेहूं की किल्लत पहले से ही चली आ रही थी. बता दें कि कृषि से संबंधित उत्पादों का बाजार वैश्विक हैं, इसलिए गेहूं की आपूर्ति में कोई भी कमी ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और अमेरिका सहित दुनिया के अन्य हिस्सों में पैदा होने वाले गेहूं की मांग और दाम को बढ़ा सकती है. रूस और यूक्रेन का युद्ध शुरू होने से पहले ही दुनिया कोरोना के मार से जूझ रही थी. समु्द्री मार्ग कई महीनों से बंद थे. गेहूं की खरीद बिक्री या तो कम हो रही थी या फिर हो ही नहीं रही थी. इसकी वजह से दुनिया में खाद्यान्नों की कीमतें पहले से ही बढ़ रही थीं

 

. गेहूं की कीमतें भी इससे बच नहीं पाई थी. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार अप्रैल 2020 से दिसंबर 2021 के बीच गेहूं की कीमतें 80 फीसदी बढ़ चुकी थी. इन विपरित परिस्थितियों के बीच फरवरी में पुतिन 24 फरवरी को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. इसका नतीजा ये रहा कि रूसी बमबारी के बीच यूक्रेन के बंदरगाह ठप हो गए, निर्यात रुक गया. यूक्रेन से गेहूं का निर्यात रुकने से यूरोपियन यूनियन देशों को खासी परेशानी हुई है. बता दें कि ओडेशा और मारियुपोल जैसे बंदरगाह ब्लैक सी के तट पर ही स्थित हैं. रूसी बमबारी की वजह से यहां से निर्यात लगभग ठप है. यहां से पिछले तीन महीनों में 20 मिलियन टन गेहूं का निर्यात होना था. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया है. अब EU यूक्रेन से गेहूं निर्यात के लिए समुद्री रूट के अलावा अन्य विकल्पों जैसे रेल, रोड और नदी का इस्तेमाल करने पर विचार कर रहा है.

 

ओडेशा पोर्ट पहुंचे यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष माइकल ने कहा कि यहां पर गेहूं, मकई और दूसरे अनाज से भरे हैं. इस पोर्ट को तुरंत खोले जाने की जरूरत है. यूरोपियन निवेश बैंक के प्रमुख का कहना है कि यूक्रेन के पास 8 बिलियन यूरो का गेहूं है लेकिन युद्ध की वजह से वो इसे निर्यात नहीं कर सकता है. यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी कहा है कि अगर यूक्रेन के बंदरगाह नहीं खोले गए तो अफ्रीका, यूरोप और एशिया के कई देशों को खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ सकता है. वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने कहा है कि 24 फरवरी को यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद गेहूं की निर्यात कीमतें 22 फीसदी बढ़ गई हैं, जबकि मक्के की कीमत 20 फीसदी बढ़ी है.

 

संकट की इस घड़ी में दुनिया की नजर भारत के स्टोरेज पर है. दुनिया भर में फैलते जा रहे इस खाद्य संकट के बीच संयुक्त राष्ट्र की संस्था वर्ल्ड फूड प्रोग्राम भारत से गेहूं खरीदने पर विचार कर रहा है. वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के अनुसार भारत से इस बारे में बात चल रही है. वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के मुख्य अर्थशास्त्री आरिफ हुसैन ने कहा कि भारत सरकार से इस बारे में बात चल रही है. बता दें कि एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2020-21 में भारत में 109.59 मिलियन टन गेहूं की पैदावार हुई थी. हालांकि दुनिया भर में गेहूं की बढ़ती कीमतें, घरेलू बाजार में खाद्यान्न की बढ़ती कीमतें और मुद्रा स्फीति से निपटने के लिए शनिवार को ही भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है. अब देखना होगा कि वर्ल्ड फूड प्रोग्राम इस रोक के बीच भारत से गेहूं खरीदने का रास्ता कैसे निकालता है. हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी जब जर्मनी की यात्रा पर गए थे तब उन्होंने कहा था कि आज भारत का किसान दुनिया का पेट भरने के लिए तैयार है. पीएम मोदी ने कहा था कि जब विश्व गेहूं की कमी से जूझ रहा है.

 

उस समय हमारे देश का मेहनती किसान दुनिया का पेट भरने के लिए आगे आ रहा है. हालांकि घरेलू मजबूरियों की वजह से भारत ने फिलहाल गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है. कुछ ही महीने पहले भारत ने खाद्यान्न संकट से जूझ रहे अफगानिस्तान को गेहूं सप्लाई करने का निर्णय लिया है. भारत सरकार अफगानिस्तान को 50 हजार टन गेहूं पाकिस्तान के जरिए भेज रहा है.

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